Magazine

Maa Ka Ghar

हर आम लड़की की तरह मै भी अपनी मम्मी की लाड़ली पापा की दुलारी बच्ची हूँ… जिससे माँ ने न कभी ज्यादा काम करवाया न पापा ने.
पर अब जब शादी तय होगयी थी तो सब चिंतित थे की कैसे हमारी गुड़िया पूरा घर संभालेगी.
विदाई के दिन पहली बार पापा को सबके सामने रोते देख पहले से घबराया मेरा दिल और सहम गया. .. और वही सब सवाल मन मेँ आने लगे की एक लड़की को ही क्यों अपना घर छोड़ के पराये घर को अपनाना पड़ता है. वहां खड़ी लगभग हर शादीशुदा लड़की को अपनी विदाई याद करके दुःख हो रहा था. सबके मन मेँ शायद ऐसा ही कुछ होगा की यहि क्यों हमारी नियति है.
विदाई के बाद मैरिज हॉल से निकल के हम ससुराल के तरफ कार से बढ़ने लगे, बाकि सब हसी ठिठोली मेँ लगे थे.. नयी बहु और भाभी का craze साफ दिख रहा था.. सब खुश थे. पर मेरे अंदर कई सवाल कई अलग अलग सी feelings थी. कभी डर सा सिहरन के रूप मेँ आता कभी उत्साह.
एक नए घर को अपनाना आसान नहीं, ऐसा ही सुनते आयी थी, सास सास होती हैं और ससुराल ससुराल.. सारी दीदियों से ज़्यदातर जो सुना उसका डर था. और दूसरी तरफ ‘आनंद ‘ को लेके उत्साह, अब लगभग 6 महीने हो चुके थे उन्हें जानते हुए, जानती थी की हमारी chemistry परफेक्ट भले न हो पर अच्छी है… ‘अब arrange marriage मेँ तो समय लगेगा’.. मोना कह रही थी. पर मैंने देखा है आनंद को मेरे लिए फ़िक्र करते हुए.. जब सगाई के 2 महीने बाद मेरा स्कूटी से accident हुआ और डॉक्टर ने minute fracture detect किया तो बैंगलोर से दिल्ली भागते हुए आये थे (ः) पापा के चेहरे पर एक सुकून सा दिखा था मानो आंखे कह रही हों की अब मेरी बच्ची का ख्याल रखने वाला मेरे अलावा कोई और भी है.
मुझे तो उनकी बच्चों जैसी शरारत से प्यार होगया था.. पापा के रूम से निकलते ही मेरे लिए जेब से चॉकलेट निकली और मुझे देने की जगह बगल वाले टेबल पर रख कर झट से मुझे hug कर के कहने लगे ‘तुमने सबको बताया नहीं अब तुम मेरी हो पूरे तरह से.. मुझसे पूछे बिना चोट भी तुम्हे छु नहीं सकती’… मैंने घूर के देखा तो कहते हैं.. ‘मज़ाक है पगली पिक्चरे नहीं देखती क्या..’ फिर हम दोनों ज़ोर से है दिए.
चेहरे पे मुस्कुराहट और आँखों मेँ फ़िक्र दोनों साफ दिख रहे थे.
उनकी मुस्कुराती आंखें मन को तस्सली देती हैं.. उसी को देख के हिम्मत आ जाती है लगता है अगर इनका साथ है तो सब handle कर जाउंगी.
२ दिन से शादी मेँ इतनी थकान हो चुकी थी की ससुराल पहुंच के क्या रस्मे हुई किस से मिली कुछ समझ नहीं आया दिमाग मानो काम करना बंद कर चूका था बस एक बार किसी के कहने की देर थी की बेटा प्रियंका ज़रा आराम कर लो..दोपहर के 3 बज रहे थे.. बस change किया और सो गयी. रात भर का सफर और शादी की रस्मो की 3 दिन की थकान.. कब नींद लगी याद नहीं.. जब आंख खुली तो 1 मिनट के लिए लिए तो माथा घूम गया, बाहर अँधेरा था कोई हलचल सुनाई नहीं आ रही थी. झट से फ़ोन उठा के टाइम चेक किया तो पैरो के निचे से ज़मीन निकलती महसूस हुई.. रात के 10 बज रहे थे..
आँखों मेँ आंसू उतर आये हिम्मत ही नहीं हुई..की बहार झाँकू.. जैसे तैसे हिम्मत जुटा के मुँह धोके बहार गयी.. लगभग सब सो चुके थे.. बगल वाले रूम मेँ आनंद और उनके छोटे भाई सोये हुए थे.. अब तो बस ऐसी हालत थी की लग रहा था कहाँ जाऊ..
कैसे मुँह दिखाउंगी सुबह उठ कर. भूख भी ज़ोरो की लगी थी पर इतनी हिम्मत नहीं हुई की किसी को पूछ सकू खाने के लिये.
मुँह लटका अपने कमरे मेँ लौटने लगी तो बड़ी नन्द दिखी एक कमरे से निकलती हुई.. शर्म के मारे मैंने आंखें झुका ली..और कमरे के और जाने लगी .. तो पीछे से आवाज़ आयी ..’भाभी भूख लगी होगी.. खाना है आपके लिये डाइनिंग टेबल पर’ मैं आती आपके साथ लेकिन गुड्डू सोने के लिये रो रहा है.. तो आप प्लीज खा लीजिये और आराम करना .. अपन सब काफी थके हैं.. सुबह बैठते हैं ..’
मुँह से एक शब्द नहीं निकला.. इतना guilt था मन मेँ. लेकिन भूख भी ज़ोरो की लग रही थी ..इसीलिए गयी और थोड़ा बहुत खा के वापस आगयी रूम मेँ.
सारी रात बेचैनी रही मन मेँ क्या कहुगी सबको…. कैसे सामना करुँगी सबका.. आनंद कितना disappoint हुए होंगे मेरे इस बर्ताव से…
सुबह ५ बजे उठ कर नाहा धो कर finally मन कठोर किया और बहार गयी.. अब तक कोई उठा नहीं था.. बस सासु माँ की पूजा करने की आवाज़ आयी पूजा घर से.. तो उस तरफ चल दी और धीरे से जाकर उनके पीछे बैठ गयी.
उनकी पूजा होने के बाद वो उठी और सीधे जल चढाने बहार चली गयी.. बस अब तो मानो रोना फूटने ही लग गया.. हज़ार ख्याल आने लगे मन मेँ की अब बस.. ये लोग मुझे घर भेज देंगे.. आनंद मुझसे शायद कभी कुछ उम्मीद ही न रखे.
पहले ही दिन सब ख़राब कर दिया मैंने.. मम्मी पापा की क्या इज़्ज़त रह गयी ..I am good for nothing .
पूजा घर से उठ कर डबडबाती आँखों से वापस जा ही रही थी की पीछे से आवाज़ आयी..
‘बिटिया चाय पियोगी?’
एक मिनट के लिये तो सन्न रह गयी.. पीछे मुड़ के देखा तो सासु माँ गैस स्टोव जला रही थी.. झट्ट से उन तक पहुंची और हिम्मत करके कहा “माँ मैं बनती हूँ न”
वो चुप रहीं कुछ पल फिर बोली.. ‘घर पर 5 बजे उठ कर चाय बनती थी क्या ?’
‘न नहीं माँ’ …’माँ मुझसे गलती होगयी… कल काफी थकी थी..समय ही नहीं पता चला ……ऐसी नींद लगी, मुझे माफ़ कर दीजिये’
कहते कहते आँखों मेँ आंसू जो इतने देर से रोके हुए थे उतर ही आये.
गाला भारी होता देख सासु माँ पीछे मुड़ी और तुरंत गले लगा लिया.
‘अरे बेटा क्या हम नहीं जानते.. सब थके थे.. सब जल्दी ही सोगये कल.. अपने घर होती तो क्या माँ से माफ़ी मांगती ?’
‘बिटिया अब तुम मेरी भी वैसे ही बेटी हो जैसे कविता.. एक माँ अपनी बेटी से ज्यादा और किसी की कमी महसूस नहीं करती.. इसीलिए मैंने कविता की बिदाई मेँ ठान लिया था की आनंद की बहु अब मेरे लिये कविता की कमी पूरी करेगी .. और अब जब तुम आगयी हो तो बहु बनने की कोशिश मत करो वरना कहीं मैं सास न बन जाऊ’
उनकी आँखों की ममता मेँ मुझे अपनी माँ नज़र आयी…
आंखें उनकी भी नम थी. उन्होंने मुझे गले से लगा लिया.
‘बेटा हमें अपने घर मेँ बेटी चाइये, बनोगी हमारी बेटी’
बस वो दिन था और आज का दिन है. सात साल होगये अब शादी को पर सासु माँ और माँ दोनों मै कोई फर्क ढूढ़ने से भी नहीं मिला.
वो उसी तरह मेरे साथ रेहती हैं जैसे उनकी अपनी बेटी के साथ.. मेरे मन के सरे भ्रम जो ससुराल को लेके थे वो सब टूट गए.
इसीलिए ये भी मेरा अपना घर है क्युकी यहाँ मेरी माँ रहती है.

Share post: facebook twitter pinterest whatsapp