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Naman Gandhiji Ko !

नमन गांधीजी को

आज गांधीजी की पुण्यतिथि है, आज रुँधे गले से राम धुन गा रहा है देश, “हम आजादी क्यों चाहते थे?” क्या हमने अपनी आजादी सिर्फ इसलिए पाई की पार्टियां सिर्फ और सिर्फ चुनाव इसलिए कराएं कि वोट कैसे हासिल की जाए,सत्ता कैसे पाई जाये,इससे इतर देश कि सामाजिक आर्थिक उन्नति से शायद कोई विशेष सरोकार नहीं, हाँ, बाई-प्रॉडक्ट के रूप में कुछ लोगों के हिस्से में आ जाये तो ठीक है। जाने कब हम भी यह भूल गए कि प्रजातन्त्र में चुनाव, चुनाव प्रक्रिया, केंडीडेट, पार्टी का मेनुफेस्टो हमारे भविष्य के लिए आवश्यक है, हमने चुनाव को कुछ लोगों के व्यवसाय के रूप में देखा हर 5 वर्ष में वोट डाल कर उन्हें जिता कर अगले 5 साल के लिए भूल गए।  जो हमारे प्रतिनिधि हैं, वे क्या कर रहे हैं उनकी क्या जिम्मेदारी, दायित्व हैं, न तो उनने सोच और न ही हमने कभी प्रश्न किया, आज ये स्थिति हो गई है कि आजादी और प्रजातन्त्र के मायने ही बदल गए,सत्ता पाने के बाद सेवा का भाव अधिकार में बदल गया, नेता ये माने लगा कि वो देश का सेवक नहीं मालिक है और उसे सत्ता सुख भोगना है,पूरे 5 साल घोडा, गाड़ी, अधिकार का मजा लेकर अगले चुनाव के लिए धर्म, जाति, हिन्दू- मुस्लिम, कर्जा माफी या “फ्री” संस्कृति को अधिकार का अमली जामा पहनाने कि कोशिश करता है।  झगड़े, जुलूस, मीटिंग करके अपने आप को नेता प्रतिपादित करता है, और फिर चुनाव जीत कर सत्ता भोगता है। हम फिर 05 साल के लिए कभी धर्म, कभी जाति और कभी अगड़े पिछड़े को खोजते हुए अपने आप को ठगा हुआ पाते हैं। कमोबेश यही प्रवृति आम जनता कि भी हो गई वह भी अपने नेता का अनुकरण करती है, यह भूल जाती है कि उसे उसने ही नेता चुना/बनाया है, और आज भी उसके सारे गलत सही काम में उसका साथ दे रही है। खुद अपने ही भाई के खून का दुश्मन बने हुए है,वह महान, देश प्रेमी, सेवक, दानी बना हुआ है और हम देश के जाहिल, गंवार लोग कहला रहे हैं।

    गांधीजी देश प्रेमी थे, उन्होने कभी भी अपने और अपने परिवार को देश के हित के आगे नहीं आने दिया, शायद इसीलिए आज उनके बच्चों का कोई नाम नहीं, परंतु आज देश की राजनीति में  वंशवाद या सल्तनतों का बोलबाला हो गया है।गांधीजी के अनुसार राजनीतिक पार्टी का गठन, देश की समस्या के अनुसार, व्यक्तियों के चयन के आधार पर करना चाहिए और उद्देश्य पूर्ति के बाद पार्टी का पुनः गठन नए उद्देश्य के अनुरूप होना चाहिए ।परंतु आज पार्टियों का एक ही ध्येय है, किसी भी प्रकार सत्ता हासिल करना और फिर आगे वो ही करना जिससे अगले चुनाव में उसका लाभ हो पक्ष वालों का काम होता है और विपक्ष का एक ही काम पक्ष को गलत सिद्ध करना।विडंवना देखिये वर्षों सत्ता करने के बाद भी उनके पास कोई मुद्दा नहीं वे भी सिर्फ दूसरों कि लाइन छोटी करने को ही अपना राजनैतिक दायित्व समझ रहे हैं और वहीं दूसरा पक्ष राजनैतिक उद्देश्य को लेकर चलने का प्रयास तो कर रहा है, परंतु शायद खुद पर भरोसा नहीं, व्यक्ति विशेष पर आक्षेप लगाते लगाते उसको तो ‘जगा’ दिया परंतु खुद भटक गए। आज राजनीति महज गाँव की चौपाल के स्तर की हो गई है, जहां बड़ी बड़ी बातों के अलावा यथार्थ में कुछ नहीं, बैठे गाँव में हैं बात दिल्ली की करते है,गाँव की समस्या से कोई मतलब नहीं। आज बेरोजगारी इतनी है और हम प्रचार प्रसार में पैसे खर्च कर रहे हैं, यदि वही प्रचार प्रसार के लिए आधुनिक संसाधन की जगह मानव जनित प्रचार का उपयोग किया जाता तो रोजगार भी दिया जाता और प्रचार भी हो जाता,परंतु योजना बनाने वालों को तो प्रचार प्रसार भी एक कमाई का स्त्रोत नजर आता है।

गांधीजी ने कभी भी सरकारी लाभ का उपयोग नहीं किया,उनको तो अँग्रेजी हुकूमत की सारी सुख सुविधा एक इशारे पर उपलब्ध हो जाती,इसके इतर, आज के नेताओं को जेल में भी 5 सितारा होटल की सुविधा चाहिए।गांधीजी  कहा करते थे, यदि देश का एक भी आदमी भूखा है तो देश के नेता को खाना नहीं खाना चाहिए। आज देश की 30% से भी अधिक आवादी भूखी नंगी है और हम रोज न जाने कितना पैसा उद्घाटन, सेमिनार, मीटिंग में खर्च कर रहे हैं।

गांधीजी कर्म प्रधान जीवन जीने वाले व्यक्ति थे, जो इस देश की संस्कृति है यहाँ कर्म को ही प्रधानता दी जाती है और शायद इसीलिए हमने प्रजातन्त्र को चुना की देश के कुछ कर्मठ, बुद्धिजीवी लोग एक संस्था के माध्यम से नीतिनिर्धारण कर देश का प्रतिनिधित्व करें बाकी जनता कर्म के द्वारा देश को सभी क्षेत्र में स्वावलंबी बनाए,परंतु दुर्भाग्य रहा की नीति निर्धारण कर्ताओं ने देश के कर्मों की उपेक्षा की और कल कारखानों के माध्यम से देश के विकास की खोखली नींव रखी जिसने जनता के हाथों से रोजगार तो छीना परंतु उसका विकल्प नहीं दिया और आज देश का मूल रोजगार खेती दम तोड़ती नजर आ रही है। आज की नीति एक तबके को बहुत अवसर देती है की वह नीतियों के भरपूर लाभ लेकर उन्नति करे वहीं दूसरी ओर शिक्षा, संसाधन के अभाव में दूसरा तबका भूखे  मरने पर मजबूर है ।

आज यदि सही मायने में गांधीजी को याद करना है तो देश के हर नागरिक को उसकी मूल भूत सुविधा रोटी,कपड़ा,के साथ शिक्षा,रोज़गार,मुहैया करना होगा, नहीं तो खोखली नींव का महल एक दिन भरभरा के गिर जाएगा ।            

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