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Navayuvakon Kee Soch

नवयुवकों की सोच

आज मेरे बेटे आशुतोष से फोन पर बात हो रही थी, बातों ही बातों में उसने पूछा पापा आज कल आप क्या कर रहे हैं? मैने कहा कुछ खास तो नहीं कुछ पढ़ लेता हूँ, उसने कहा क्या पढ़ रहे हैं, मैंने कहा माँ गायत्री पीठ से एक पुस्तक “प्रज्ञाउपनिषद” लाया था, अभी शुरू ही की है, उसमें 10 अवतार के बारे में वैज्ञानिक ढंग से बताया है। अच्छा उसने कहा कैसे! मैंने कहा जैसे मत्स्य अवतार क्यों हुआ? हाँ, उसने कहा, क्योंकि सृष्टि के आरंभ में जल ही था इसलिए जल में जो जीवन था उसके आदर्श को मत्स्य अवतार माना इत्यादि, हाँ सही है, मुझे जिज्ञासा हुई तो मैंने पूछा अच्छा तुमने इस बिषय में पढ़ा है, हाँ पापा मैंने थोड़ा पढ़ा है, “Darvin theory” भी पढ़ी है, गुड, तो क्या समझे, पापा जीवन के विकास के साथ साथ ही “Avatar theory” चली है, good, कैसे! जैसे धरती निकली तो जल और पृथ्वी पर जीवन बना इसलिए कश्यप (कछुए) का अवतार जो दोनों जगह के लिए आदर्श था,अच्छा! तो नर्सिंग अवतार के विषय में क्या सोचना है, simple वही सृष्टि के विकास का सिद्धान्त, कैसे! उसने कहा पापा जिस समय नरसिंह अवतार हुआ होगा उस समय तक मानव पूर्ण विकसित नहीं हुआ होगा, वह अपने विचारों और कर्मों में पशु और मानव दोनों के गुण रखता होगा, हो सकता है उस युग में वह शारीरिक रूप से मानव हो गया हो, परंतु खानपान और सोच में शेर के गुण रखता हो, इसलिए नर और सिंह अर्थात पशु वत गुण हों, गुड! अच्छी जानकारी रखते हो, परंतु बेटा शायद मैं सोचता हूँ, आज के बच्चे इन सब बातों में ध्यान नहीं देते और उनको इतना ज्ञान न हो, तुमने पढ़ा है इसलिए पता है, No papa you are not correct !!! हम शायद आप लोगों मेरा मतलब आप की उम्र के लोगों से है, वे इस प्रकार सोचते हैं, परंतु हम लोग अपनी संस्कृति को deeply समझने की कोशिश करते हैं, हम Mechanical Process में विश्वास नहीं करते, क्या मतलब ! मैंने कहा, अरे वो ही पूजा-पाढ़,कर्मकांड इत्यादि, अच्छा,तो कैसे!!!!! पापा पूरी दुनिया के संचालन में कोई एक अदृश्य शक्ति काम करती है और हम सब उसके कारक हैं, अच्छा कैसे, वह प्रकृति के माध्यम से हमे निर्देशित करता है, जैसे सुबह हो गई उठाना है,जीवन यापन करना,मतलब !!!! समय और प्रकृति के साथ सामंजस्य करके अपनी दिनचर्या निश्चित करना  आदि उसी से उसकी जिजीविषा व्यक्त होती है।

उपरोक्त व्यक्तिगत प्रसंग में, मैंने आप सब को इसलिए शामिल किया कि हम अपनी आने वाली पीढ़ी कि विचारधारा से अवगत हो सकें। आने वाली पीढ़ी हमारी संस्कृति को वैज्ञानिक तरीके से समझने का प्रयास करती है और हमारी पीढ़ी को भी अपने विचारों, पठन पाठन,व्यवहार में प्रयास करना चाहिए कि उन्हें आदर्श प्रस्तुत करें।

राकेश चौबे

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