LifeStyle

Kick on Stomach – पेट पर लात

किसी भी स्नातन पर्व के आने के पहले अखबार की तैयारियां जोरों पर थी, उसे इस त्यौहार की न्यूज़ देकर, नोट भी छापना थे और पर्व को टारगेट भी करना था। ऐसे ही एक ट्रेन में इन दोमुँहें अखबारों की थप्पी पड़ी थी, वहाँ लगभग हर कोई इस दोगले पेपर को चाट चुका था।
अब अचानक वहाँ पर्यावरण पर चर्चा चल पड़ी, और चर्चा में सब यात्री बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने लगे….. हर कोई वृक्ष, नदी, समुन्द की चिंता से पटा पड़ा था। क्योंकि हर अखबार हर जगह, ईकोफ्रेंडली होने का ज्ञान बांट चुका था। कोई न कोई सनातन पर्व नज़दीक था।
वहाँ एक पर्यावरणविद बैठे थे, तभी उन्हें सामने बैठे एक युवक ने बताया कि वो पिछले 2 साल से घर पर ही छोटी सी मूर्ति बना लेता है।
सच्चा पर्यावरणविद :- पर क्यों?
युवक :- पेपरवाला कहता है, कि ये ईकोफ्रेंडली है इसलिए मैं भी उसका समर्थन करता हूँ।
पर्यावरणविद ने सामने बैठे युवक से पूछा :- तुम तो केमिकल फेक्ट्री में काम करते हो ना?
युवक :- हाँ।
पर्यावरणविद :- पर उसका ज़हरीला धुआँ तो प्रकृति के लिए नुकसानदेह है, तुम्हें उस जॉब को तुरन्त छोड़ देना चाहिए।
युवक :- ही ही ही.. अंकिलजी ऐसे कैसे छोड़ दूं, फिर मेरा घर कैसे चलेगा?
पर्यावरणविद :- वैसे ही चलेगा जैसे एक मूर्तिकार का चलता है जिसके पेट पर तुम्हारी दोगली ईकोफ्रेंडली लात पड़ी है।
युवक :- ह्म्म्म .. पर अंकिल जी वो प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्ति बनाता ही क्यों हैं??
पर्यावरणविद :- वैसे ही, जैसे केमिकल फैक्टरी बनाती है। डिमांड के कारण।
युवक :- पर ये बिज़नेस है।
पर्यावरणविद :- उन गरीब कलाकारों का भी तो पेशा है, वो अपनी मूर्तिकला से क्यों न कमाएं? वो भी साल में सिर्फ एक बार… यूँ भी वो अमीरों की डिमांड पर ही ये बनाते हैं, वही तो इन महंगी और बड़ी मूर्तियों को खरीदेगा, और बड़ी मूर्ति मिट्टी की नहीं बनाई जा सकती वरना वो टिकेगी ही कैसे। आख़िर तुम भी तो लालबाग जाते हो मन्नत मांगने??
युवक :- पर अंकिल जी ये गलत है, नदी, समुद्र, गन्दा हो रहा है,
पर्यावरणविद :- नदी, समुद्र तो सबसे ज्यादा, तुम्हारे प्लास्टिक से गन्दा होता है, पर तुमने कुरकुरे, मैगी, बिस्किट, चिप्स, कोलड्रिंक खरीदना बन्द किया कभी??
तुम्ही लोगों ने रोज़ प्लास्टिक जला जला कर ओज़ोन में छेद कर दिए, है कि नहीं??
रोज़ सिगरेट, गांजा, चरस धुआँ फूँकते हुए, पर्यावरण के लिए ज़हर फ़ेंकते हैं उसका क्या है??
क्या ये सच नहीं है कि तुम्हारे मोबाइल फोन नेटवर्क के लिए कितनी हानिकारक रेडिएशन विश्व को गील रही है, वो भी एक मकड़ी की भांति, इसीलिए तुम उसे नेट कहते फिरते हो।
ऐसे सैकड़ों उदाहरण है कि तुमने नदी, पर्वत, वृक्ष, समुद्र के साथ क्या किया है। आज अचानक ये दोग्लाई कहाँ से आई, वो भी दो टके का अखबार पढ़कर??
युवक :- ह्म्म्म….? ये बात भी ठीक है, मैंने कभी इसे इस तरह से नहीं सोचा।
पर्यावरणविद :- तो सोचो,..यदि मूर्तिकार मूर्ति बनाना छोड़ देगा तो क्या तुम उसे कोई और काम दिलाओगे??
युवक :- हम्म, सही बात है…।
पर्यावरणविद :- यदि मूर्तिकार तुम्हारे अनुसार मिट्टी की छोटी छोटी मूर्ति बनाकर बेचे तो क्या वो अपनी सालाना कीमत पा सकेगा??
युवक :- हम्म..
पर्यावरणविद :- क्या ये पेपरवाला उसके पेट पर लात नहीं मार रहा??, क्या तुम उसकी ग़रीबी में उसके पेट पर लात मारकर चैन से रह सकोगे??
युवक :- नहीं, अंकिल जी बिल्कुल नहीं।
पर्यावरणविद :- अख़बार वाले को तो इस न्यूज़ के लिए बाहर से फंड मिलता है। पर सारा ज्ञान एक मूर्तिकला के कलाकार के लिए ही क्यों??
यदि वो अपनी कला से चार पैसे कमाता है ताकि वो सालाना अपना घर चलाएगा तो इसमें तुम्हें क्या दिक्कत है?? जैसे तुम जैसे लाखों लोग, औद्योगिक जगत के हानिकारक युग में कारखानों में सब कुछ जानते हुए भी काम कर रहे हो, ऐसे ही वो मूर्तिकार भी है।
युवक :- ? सॉरी अंकिल जी सही कहा आपने, ये सारा बखेड़ा इस दोगले अखबार वाले का है।
पर्यावरणविद :- इस बिकाउ अखबार को पढ़ते ही क्यों हो? इसे बंद करो और किसी भिखारी को भोजन करा दो। जो अख़बार सिलेक्टिव दलाली के हिसाब से न्यूज़ नरेशन करता है। उसके चक्कर में अनर्थ मत करो। और हां दूसरे को समझाने से पहले ज़रूरी है कि हम खुद कहाँ खड़े हैं।
युवक :- अंकिल जी..इस नजरिए से कभी देख नहीं पाया, आज उन मूर्तिकारों का दर्द बताने के लिए आपको.. धन्यवाद।
~अमित महोदय”आर्यावर्ती”.

नोट :- वास्तविकता के धरातल पर कुछ मूर्तिकारों से चर्चा के बाद इसे लिखा है, ये वास्तव में उन गरीबों की सालाना आय का प्रश्न है, वास्तव में जो पर्यावरणविद हैं, वो बड़ी कम्पनियों का भी विरोध करें जो इतनी बड़ी मात्रा में पीओपी बना रहा है, और फिर उन मूर्तिकारों के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था करे। क्योंकि नदी के साथ साथ उन मूर्तिकारों की स्थिति भी देखनी होगी। हम केवल गरीब को टारगेट करें ये अन्याय होगा, हमारे पर्यावरण सरंक्षण के कारण हम किसी गरीब की रोटी न छिन जाए, बस यही निवेदन।?

 

Article Source : Amit Mahodaya FB page

Share post: facebook twitter pinterest whatsapp